सन्तो की वाणी
श्री रामकृष्णदेव की वाणी
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भगवान से प्रार्थना करो – हे प्रभु, अपने करूणापूर्ण मुख से मेरी रक्षा करो. मुझे असत् से सत् की ओर, तम से ज्योति की ओर, मृत्यु से अमृतत्व की ओर ले चलो ।
मैं तुमसे कहता हूँ, जो उन्हें चाहता है वह उन्हें पा लेता है । इस बात को अपने जीवन में परखकर देख लो । सच्चे उत्साह के साथ तीन ही दिन तक चेष्टा करो, तुम निश्चित सफल होगे । जिसकी एकाग्रता और व्याकुलता प्रबल होती है वह शीघ्र ही भगवान् को पा लेता है ।
साधु को कभी संचय नहीं करना चाहिए । पंछी और दरवेश कल के लिए व्यवस्था करके नहीं रखते ।
संसार में दुर्जनों से स्वयं की रक्षा करने के लिए तमोगुण का प्रदर्शन करना चाहिए । किन्तु कोई हानि पहुँचायेगा इस आशंका से किसी को हानि नहीं पहुँचानी चाहिए ।
ऊँट कटीली घास खाना बहुत पसन्द करता है । जितना खाता है उतना ही उसके मुँह से धर-धर खून निकलता है । फिर भी वह कटीली घास खाते ही रहता है । खाना नहीं छोड़ता । इसी प्रकार संसारी लोग भी संसार में इतना दुःख कष्ट पाते हैं, किन्तु कुछ ही दिन में वह सभ भूलकर फिर ज्योंके त्यों हो जाते हैं ।shri-ramkrishna-dev-ki-vani
गुरु विशाल गंगाजी की समान हैं । गंगा में लोग सारा कूड़ा-करकट और गंदगी डाल देते हैं । किन्तु उससे उसकी पवित्रता घट नहीं जाती । इस प्रकार गुरु पर भी तुच्छ निन्दा अपमान आदि का परिणाम नहीं होता । वे इनसे बहुत उपर होते हैं ।
यह संसार हमारा कर्मक्षेत्र है । यहाँ कुछ कर्तव्य करने के लिए हमारा जन्म हुआ है । जैसे लोगों का निवास देहात में होता है किन्तु वे काम करने के लिए शहर आते हैं ।
शुद्ध ज्ञान और शुद्ध भक्ति एक ही वस्तु है । दोनों साधक को एक ही लक्ष्य पर पहुँचाते हैं । भक्ति का मार्ग अधिक सरल है ।
भक्त का बल किसमें निहित है ? इसमें कि वह भगवान् का बालक है, और उसकी भक्ति के आँसू ही उसका सब से बड़ा अस्त्र है ।
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