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सन्तो की वाणी
रूप चतुर्दशी की कथा
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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रूव को चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है । इस दिन को ही नरक चतुर्दशी व छोटी दिवाली भी कहा गया है । नरक से मुक्ति पाने के लिए प्रातः सूर्योदय से पहले उबटन मसलकर स्नान करना चाहिये । पट्टे के नीचे दीपक जलाकर बाल धोकर मसल-मसलकर पूर्ण स्नान करना चाहिये । कहा जाता है कि इस दिन का सम्बन्ध स्वच्छता पवित्रता से होता है, इसलिए शरीर व घर की पूर्ण रूप से सफाई करनी चाहिये । ऐसा करने से भगवान सुन्दरता प्रदान करता है ।
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कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का संहार किया था । इस दिन शाम को यमराज के लिए दीपदान करना चाहिये । धनतेरस के समान ही मुख्यद्वार की पूजा करनी चाहिये ।
कथा रूप चतुर्दशी –
एक समय एक योगीराज थे उन्होने अपने मन को एकाग्र करके भगवान में लीन होना चाहा। वे समाधि लगाकर बैठ गये । समाधि को कुछ दिन बीते थे कि उनके शरीर में कीड़े पड़ गये । सिर के बालों तथा आंखो के भौंहों में जुएँ भी पड़ गई । अपनी यह दशा देखकर योगीराज बहुत दुःखी रहने लगे ।roop-chaudas-katha
कुछ दिनों बाद नारद जी वहाँ पधारे तो योगीराज ने उनको कहा, ‘‘ मैं समाधि में था परन्तु मेरी यह दशा क्यों हो गई ।’’ तब नारदमुनी बोल, हे योगीराज ! तुम भगवान का सच्चे मन से चिन्तन तो करते थे मगर तुमने देहआचार का पालन नहीं किया इसी कारण तुम्हारी यह दशा हुई है । अगर तुम अपनी इन्द्रियों को वश में रखते तथा । नियम अनुसार देह-आचार का पालन करते तो आज तुम्हे दुःखी नहीं होना पड़ता ।
अब मैं तुम्हे जो बताता हूं तुम वैसा ही करना । तुम कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखकर कृष्ण भगवान की पूजा में ध्यान लगाकर करना । ऐसा करने से तुम्हारा शरीर पहले के समान हो जायेगा ।
योगीराज ने कार्तिक के कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी आने पर नारदमुनि के बताये अनुसार व्रत व पुजन किया । ऐसा करने से योगीराज का शरीर पहले जैसा सुन्दर होगया उसी दिन से इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है ।roop-chaudas-katha