व्रत कथा
कार्तिक पूर्णिमा की पुजा व कथा
kartik-purnima-ke-katha-in-hindi इस दिन महादेव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन शाम के समय भगवान का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगाजी में या पुष्कर में स्नान करके दीप-दान, यज्ञ, होम आदि करने का विशेष महत्त्व माना गया है। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो महाकार्तिकी मानी जाती है। रोहिणी नक्षत्र होने पर तो इसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इस दिन चन्द्रोदय होने पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसुईया और क्षमा इन छः कृतिकाओं का पूजन वन्दना करने से पुण्य फल मिलता है। सांयकाल में दीपमालिका के दर्शन करने लोग मन्दिरों में जाते हैं। शाम को मन्दिरों, चौराहों, गलियों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाते हैं।
कार्तिक स्नान का महत्व
शरीर को स्वस्थ व निरोग रखने के लिए प्रतिदिन स्नान करना लाभप्रद होता है। धर्म का कार्य करने के लिए प्रतिदिन स्नान करना आवश्यक माना गया है। वर्ष के बारह महीनों में से माघ, वैशाख तथा कार्तिक स्नान का विशेष महत्त्व माना गया है। कहा जाता है कि कार्तिक स्नान करने वाले को एक समय भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते है। यह व्रत शरद पूर्णिमा से प्रारम्भ करके कार्तिक शुक्ल की पूर्णिमा को समाप्त किया जाता है। घर में स्नान करने की बजाय नदी, तालाब या तीर्थों में स्नान करना अधिक श्रेष्ठ माना गया है।
कुरूक्षेत्र, अयोध्या तथा काशी आदि तीर्थों में स्नान करने का बहुत अधिक महत्त्व है। स्नान से पूर्व हाथ-पाँव धो लेने चाहिए और हाथ में जल लेकर सूर्यदेव को अर्ध्य देना तथा अपने पितरों को भी याद करना चाहिए। भारत के छोटे बड़े नगरों में अनेक स्त्री-पुरुष सुबह जल्दी उठकर कार्तिक स्नान करके भगवान का भजन करके व्रत रखते हैं व भजन गाते हैं। सिक्खों के गुरु नानकजी का जन्म भी कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को हुआ था। अतः इस दिन गुरू नानक जयन्ति भी मनाई जाती है।
पीपल पंथवारी की कहानी
एक गूजरी थी। वह कार्तिक स्नान करने के लिए पुष्कर राज गई। जाते हुए अपनी बहू को दूध-दही बेचने का कहकर गई और कहा कि मैं आऊँ जब तक दूध-दही के पैसे इकट्ठे करके रख देना। बहू ने कहाठीक है। सास तीर्थ चली गई उधर बहू दूध-दही बेचने निकली। कार्तिक का महीना था। रास्ते में उसने देखा कि सारी औरतें बड़, पीपल, पंथवारी माता सींच रही थीं। गुूजरी की बहू भी वहाँ चली गई और पूछने लगी कि ये आप सब क्या कर रही हो? तब उन्होंने कहा हम तो बड़, पीपल, पंथवारी माता को सींच रहे हैं। तब उसने कहा कि ऐसा करने से क्या होता है।
तब औरतों ने कहा, ‘‘अन्न, धन्न होता है, बिछड़ा हुआ मिलता है, पुत्रहीन को पुत्र प्राप्ति होती है। तब गूजरी की बहू ने कहा, ‘‘तुम तो पानी से सींच रही हो, मैं दूध-दही से सींचूगीं। बड़, पीपल, पंथवारी को दूध-दही सींचते-सींचते महीना पूरा हो गया। तब सास भी कार्तिक नहाकर तीर्थ से वापस घर आ गई और बहू से दूध-दही के पैसे मांगने लगी तब बहू ने बोला, ‘‘कल दे दूँगी।’’ दूसरे दिन बहू पीपल, पंथवारी के पास जाकर सो गई। तब पंथवारी माता उससे बोली, ‘‘तू यहाँ पर क्यों सोई है?’’ तब बहू बोली, ‘‘मेरी सास मुझसे दूध-दही को बेचकर लाये हुए पैसे मांग रही है, परन्तु मैं तो दूध-दही यहाँ सींच देती थी।
अब पैसे कहाँ से लाऊँ?’’ तब पंथवारी माता बोली, ‘‘मेरे पास पैसे तो नहीं है, पर ये जो पत्थर, पत्ते, जो भी पड़े हैं वही ले जा और जाकर उन्हें सन्दूक में रख देना। पत्थर, पत्ते वगैरह घर लाकर सन्दूक में रख दिये और डर के मारे ओढ़कर सो गई। सास ने पूछा, ‘‘पैसे लाई क्या?’’ तब उसने कहा कि, ‘‘सन्दुक में पड़े हैं।’’ सास ने सन्दूक खोली तो देखकर हैरान हो गई, वहाँ तो हीरे-मोती जगमगा रहे थे। पत्तों तथा पत्थरों का धन हो गया। सास ने बहू को बुलाकर पूछा कि, ‘‘इतना धन कहाँ से लाई, ‘‘तब बहू उस धन को देखकर समझ गई और सासू को बोली, ‘‘माताजी आपने मुझे दूध-दही बेचने को कहा था, मगर मैं तो पूरे एक महीने तक बड़, पीपल, पंथवारी को वह दूध-दही सींच देती थी। इसलिए मुझे तो पंथवारी माता टूटी है।kartik-purnima-ke-katha-in-hindi
उनके द्वारा कहने पर मैं पत्थर और पत्ते लेकर आ गई थी वही आज हीरे-मोती बन गये है। सासू को उसकी बात सुनकर लालच आ गया और सासू ने कहा कि अबकी बार मैं भी कार्तिक नहाऊंगी और बड़, पीपल, पथवारी को दूध, दही से सींचूगी। सासू दूध-दही तो बेच कर आ जाती और बरतन- धोकर पीपल-पथवारी को सींच आती। और घर आकर बहू को कहती कि तूं मेरे से पैसे मांग। तो बहू बोली सासू जी कभी बहू भी हिसाब मांगती है क्या? परन्तु सास नहीं मानी तो बहू ने सासू से पैसे मांगे। तो बहू के समान सासू भी पीपल के पास जाकर धरणा देकर बैठ गई।
पीपल पथवारी ने सासू को भी पत्थर, पत्त ओद ले जाने को कहा। सासू ने भी ले जाकर संदूक में रख दिये। बहू ने खोल कर देखा तो कीड़े-मकोड़े चल रहे थे तब सासू ने कहा कि पीपल-पथवारी तो छल करती है। जो तूझे तो इतना धन दे दिया पर मुझे कीड़े-मकौड़े दिये। तब सबने उस गूजरी से कहा कि तेरी बहू ने तो सच्चे मन से पीपल, पथवारी को सींचा था । मगर तू तो धन की भूखी है। तूने तो धन के लालच में सींचा था। इसलिए तेरे साथ ऐसा बुरा हुआ।
हे पथवारी माता! जैसा बहू को दिया वैसा सबको देना, सासू को दिया वैसा किसी को भी मत देना। kartik-purnima-ke-katha-in-hindi
Thambi tamilrockers
29th November 2019 at 7:51 am
Great blog post. Thanks for the info.
ebig24blog
18th February 2020 at 10:41 am
thnaks