Home Santo Ki Vani स्वामी विवेकानन्द के विचार / swami vivekananda vichar – vivekananda quotes in hindi

स्वामी विवेकानन्द के विचार / swami vivekananda vichar – vivekananda quotes in hindi

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स्वामी विवेकानन्द के विचार / swami vivekananda vichar – vivekananda quotes in hindi

सन्तो की वाणी

स्वामी विवेकानन्द के विचार

swami vivekananda vichar – vivekananda quotes in hindi

सन्तो की वाणी में आपको भारत के सन्त और महापुरूषों के मुख कही हुवी व लिखे हुवे प्रवचनों की कुछ झलकियां आपके सामने रखेंगे । आप इसे ग्रहण कर आगे भी शेयर करें जिससे आप भी पुण्य के भागीदार बने ।

सच्चा धर्म

धर्म का अर्थ है, उसी ब्रह्मत्व की अभिव्यक्ति, जो सब मनुष्यों में पहले ही से विद्यमान है। vivekananda-prasang

पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो – सारा धर्म इसीमें हैं।

मैं उस भगवान या धर्म पर विश्वास नहीं करता, जो न विधवाओं के आँसू पोंछ सकता है और न अनाथों के मुँह में एक टुकड़ा रोटी ही पहुँचा सकता है। किसी धर्म के सिद्धान्त कितने ही उदत्त एवं उसका दर्शन कितना ही सुगठित क्यों न हो, जब तक वह कुछ ग्रन्थों और मतों तक ही परिमित है, मैं उसे नहीं मानता।

बच्चों, तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोड़कर और कोई दुसरा धर्म नहीं इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत- मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरता, पाप, असदाचरण तथा दुर्बलता तुमसें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाकी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी।

मानव मात्र के लिए स्नेह और दया ही सच्ची धार्मिकता की परख है।

क्या तुम निःस्वार्थ हो? यदि तुम हो, तो चाहे तुमने एक भी धार्मिक ग्रन्थ का अध्ययन न किया हो, चाहे तुम किसी भी गिरजा या मन्दिर में न गये हो, फिर भी तुम पूर्णता को प्राप्त कर लोगे।

जिससे बल मिलता है, उसीका अनुसरण करना चाहिए। अन्यान्य विषयों में जैसा है, धर्म में भी ठीक वैसा ही है – जो तुमको दुर्बल बनाता है, वह समूल त्याज्य है। रहस्य-स्पृहा मानव-मस्तिष्क को दुर्बल कर देती है।

धर्म के बारे में कभी झगड़ा मत करो। धर्म सम्बन्धी सभी झगड़ा-फायदों से केवल यह प्रकट होता है कि आध्यात्मिकता नहीं है। धार्मिक झगड़े सदा खोखली बातों के लिए होते है। जब पवित्रता नहीं रहती, जब आध्यात्मिकता विदा हो जाती है और आत्मा को नीरस बना देती है, तब झगड़े शुरू होते हैं, इसके पहले नहीं।

जिसे तुम अपना धर्म कहकर गौरव का अनुभव करते हो, उसे कार्यरूप में परिणत करो। ईश्वर तुम्हारा कल्याण करे!

सच्चा धर्म सकारात्मक होता है, नकारात्मक नहीं, अशुभ एवं असत से केवल बचे रहना ही धर्म नहीं – पर वास्तव में शुभ एवं सत्कार्यों को निरन्तर करते रहना ही धर्म है।
धर्म की उत्पत्ति प्रखर आत्मत्याग से ही होती है। अपने लिए कुछ भी मत चाहो। सब दुसरों के लिए करो। vivekananda-prasang

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