सन्तो की वाणी
स्वामी विवेकानन्द के विचार
swami vivekananda vichar – vivekananda quotes in hindi
सन्तो की वाणी में आपको भारत के सन्त और महापुरूषों के मुख कही हुवी व लिखे हुवे प्रवचनों की कुछ झलकियां आपके सामने रखेंगे । आप इसे ग्रहण कर आगे भी शेयर करें जिससे आप भी पुण्य के भागीदार बने ।
कर्तव्य
हमारा पहला कर्तव्य यह है कि अपने प्रति घृणा न करें । क्योंकि आगे बढनें के लिए यह आवश्यक है कि पहले हम स्वयं में विश्वास रखें और फिर ईश्वर में। जिसे स्वयं में विश्वास नहीं, उसे ईश्वर में कभी भी विश्वास नहीं हो सकता। vivekananda-quotes-4
प्रत्येक मनुष्य का आदर्श लेकर उसे चरितार्थ करने का प्रयत्न करे। दूसरों के ऐसे आदर्शो को लेकर चलने की अपेक्षा, जिनको वह पूरा ही नहीं कर सकता, अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का अधिक निश्चित मार्ग हैं।
जो कर्तव्य हमारे निकटतम है, जो कार्य अभी हमारे हाथों में है, उसको सुचारू रूप से सम्पन्न करने से हमारी कार्य-शक्ति बढ़ती हैं. और इस प्रकार क्रमशः अपनी शक्ति बढ़ाते हुए हम एक ऐसी अवस्था की भी प्रप्ति कर सकते हैं, जब हमें जीवन और समाज के सबसे ईप्सित एंव प्रतिष्ठित कार्यों को करने का सौभाग्य प्राप्त हो सके।
प्रत्येक कर्तव्य पवित्र है और कर्तव्य-निष्ठा भगवत्पूजा का सर्वात्कृष्ट रूप हैं।
जब तुम कोई कर्म करो, तब अन्य किसी बात का विचार ही मत करो। उसे एक उपासना के – बड़ी से बड़ी उपासना के रूप में करो, और उस समय उसमें अपना सारा तन-मन लगा दो।
अत्यन्त निम्नतम कर्मों को भी तिरस्कार की दृष्टि से नहीं देखना चाहिए।
यदि तुम किसी मनुष्य की सहायता करना चाहते हो, तो इस बात की कभी चिन्ता न करो कि उसका व्यवहार तुम्हारे प्रति कैसा होना चाहिए। यदि तुम एक श्रेष्ठ एंव उत्तम कार्य करना चाहते हो, तो यह सोचने का नष्ट मत करो कि उसका फल क्या होगा।
निष्क्रियता का हर प्रकार से त्याग करना चाहिए। क्रियाशीलता का अर्थ है, प्रतिरोध। मानसिक तथा शारीरिक समस्त दोषों का प्रतिरोध करो, और जब तुम इस प्रतिरोध में सफल होगे, तभी शान्ति प्राप्त होगी। vivekananda-quotes-4
गीता का कथन है, कर्मयोग का अर्थ है- कुशलता से अर्थात वैज्ञानिक प्रणाली से कर्म कराना। कर्मानुष्ठान की विधि ठीक ठीक जानने से मनुष्य का श्रेष्ठतम फल प्राप्त हो सकता है।