सौन्दर्य का घमण्ड
एक लघु कहानी
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आज जिस प्रेरक प्रसंग की बात कर रहें । वह है सौन्दर्य का घमण्ड ।
एक बार सम्राट चन्द्रगुप्त चाणक्य से किसी बात पर चर्चा कर रहे थे कि अकस्मात् चन्द्रगुप्त ने चाणक्य से कहा । ‘‘आपकी विद्धता, सूझबूझ और चातुर्य की मैं दाद देता हूं । मगर क्या ही अच्छा होता, यदि भगवान ने आपको सुन्दर रूप दिया होता ।’’
चाणक्य ने जान लिया राजा को अपने सौन्दर्य का घमण्ड हो गया है । और वे सौन्दर्य के सामने विद्या को नगण्य समझ रहे हैं । चाणक्य ने सेवक को बुलाकर मिट्टी और सोने के एक-एक पात्र में जल लाने के लिये कहा । उसके द्वारा पात्र में जल लाने पर चाणक्य ने राजा से पहले मिट्टी के पात्र का और बाद में स्वर्ण-पात्र का जल पीने के लिये कहा । फिर राजा से प्रश्न किया, महाराज किस पात्र का जल शीतल लगा ? चन्द्रगुप्त ने उत्तर दिया, मिट्टी के पात्र का ?prerak-prasang-aaj-ke-vichar-9
इस पर चाणक्य ने कहा, महाराज वेसे तो दानों ही पात्रों में डाला गया जल शीतल था । किन्तु बाहर से सुन्दर दिखायी देनेवाले स्वर्णपात्र का जल शीतल नहीं रहा । जबकि मिट्टी के पात्र का जल शीतल रहा । यह बात सौन्दर्य और विद्या की है । सुन्दरता और कुरूपता का विद्या से कोई सम्बन्ध नहीं, बल्कि सौन्दर्य से विद्या श्रेष्ठ है ।
व्यक्ति को हमेशा समाज, परिवार आदि में लोगों के अवगुणो को न ध्यान में रखते हुए गुणो को महत्व देना चाहीये । जबकी उसकी सुन्दरता व उसका पहनावा, रहन सहन आदि को नजर अन्दाज करते हुए विद्या, ज्ञान व गुणों को महत्व देना चाहिये । अगर आप को यह प्रसंग अच्छा लगे तो इस प्रेरक प्रसंग prerak-prasang-aaj-ke-vichar-9 को ज्यादा-ज्यादा शेयर करें ।