सन्तो की वाणी
स्वामी विवेकानन्द के विचार
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सन्तो की वाणी में आपको भारत के सन्त और महापुरूषों के मुख कही हुवी व लिखे हुवे प्रवचनों की कुछ झलकियां आपके सामने रखेंगे । आप इसे ग्रहण कर आगे भी शेयर करें जिससे आप भी पुण्य के भागीदार बने ।
स्त्रियों एवं सर्वसाधारण की शिक्षा
जिनकी माताएँ शिक्षित और नीतिपरायण हैं उनके ही घर में बड़े लोग जन्म लेते हैं। ण्ण्ण् वर्तमान दशा से स्त्रियों का प्रथम उद्धार करना होगा। सर्वसाधारण को जगाना होगा तभी तो भारत का कल्याण होगा। vivekananda-prasang-2
इसीलिए इतना समझाकर तुम लोगों को लड़कियों के लिए गाँव.गाँव में पाठशालाएँ खोलकर उन्हें शिक्षित बनाने के लिए कहता हूँ। स्त्रियाँ जब शिक्षित होगी तभी तो उनकी सन्तानों द्वारा देश का मुख उज्जवल होगा और देश में विद्याए ज्ञानए शक्तिए भक्ति जाग उठेगी।
हमें नारियों को ऐसी स्थिति में पहुँचा देना चाहिए जहाँ वे अपनी समस्या को अपने ढंग से स्वयं सुलझा सके। उनके लिए यह काम न कोई कर सकता है और न किसी को करना ही चाहिए। और हमारी भारतीय नारियाँ संसार की अन्य किन्हीं भी नारियों की भाँति इसे करने की क्षमता रखती हैं।
धर्म शिल्प विज्ञान गृहकार्य भोजन बनाना सीना शरीर. पालना आदि सब विषयों में मोटी. मोटी बातें सिखलाना उचित है। नाटक और उपन्यास तो उनके पास तक नहीं पहुँचाने चाहिए। छात्राओं के सामने आदर्श नारी.चरित्र सर्वदा रखकर त्यागरूप व्रत में उनका अनुराग उत्पन्न कराना चाहिए। सीता सावित्री दमयन्ती लीलावती खाना मीराबाई आदि के जीवन.चरित्र कुमारियां को समझाकर उनको अपना जीवन वैसा बनाने का उपदेश देना होगा।
इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त होने पर स्त्रियाँ अपनी समस्याएँ स्वयं हल कर लेंगी। अब तक तो उन्होनें केवल असहाय अवस्था में दूसरों पर आश्रित हो जीवन यापन करनाए और थोड़ी सी भी अनिष्ट या संकट की आशंका होने पर आँसू बहाना ही सीखा है। पर अब दूसरी बातों के साथ.साथ उन्हें बहादूर भी बनना चाहिए। आज के जमाने में उनके लिए आत्मरक्षा करना सीखना भी बहुत जरूरी हो गया है। देखो झाँसी की रानी कैसी महान थी!
जिस जाति की जनता में विद्या.बुद्धि का जितना ही अधिक प्रचार है वह जाति उतनी ही उन्नत है।
यदि निम्न श्रेणी के लोगों को शिक्षा दे सको तो कार्य हो सकता है। ज्ञानबल से बढकर और क्या बल है! क्या उन्हें शिक्षित बना सकते होघ् बड़े आदमियों ने कब किस देश में किसका उपकार किया है सभी देशों में मध्यमवर्गीय लोगों ने ही महान कार्य किये हैं।
बौद्धिकता पर कुछ संस्कृत लोगों का ही एकाधिकार नहीं रहना चाहिएए वह ऊपर से नीचे के वर्गों में फैलायी जाएगी। शिक्षा आ रही है और इसके बाद अनिवार्य शिक्षा आयेगी। हमारे लोगों में कार्य कर सकने की जो महान क्षमता है उसका उपयोग किया जाएगा।
अपने निम्न वर्ग के लोगों के प्रति हमारा एकमात्र कर्तव्य है. उनको शिक्षा देनाए उनमें उनकी खोई हुई जातीय विशिष्टता का विकास करना। उनमें तरह.तरह के विचार पैदा करने होंगे। उनके चारों और दुनिया में कहाँ क्या हो रहा है इस सम्बन्ध में उनकी आँखें खोल देनी होगी इसके बाद बाकी वे स्वयं कर लेंगे।
भारत के इन दीन.हीन लोगों को इन पददलित जाति के लोगों को उनका अपना वास्तविक रूप समझा देना परमावश्यक है। जात.पाँत का भेद छोड़कर हर एक स्त्री.पुरूष को प्रत्येक बालक.बालिका को यह सन्देश सुनाओं कि ऊँच नीच अमीर.गरीब और बड़े.छोटे सभी में उसी एक अनन्त आत्मा का निवास है जो सर्वव्यापी है इसलिए सभी लोग महान तथा सभी लोग साधु हो सकते हैं। आओ हम प्रत्येक व्यक्ति में घोषित करें ।
उठो जागो और जब तक तुम अपने अन्तिम ध्येय तक नहीं पहुँच जाते तब तक चैन न लो। vivekananda-prasang-2