सन्तो की वाणी
स्वामी विवेकानन्द के विचार
swami vivekananda vichar – vivekananda quotes in hindi
सन्तो की वाणी में आपको भारत के सन्त और महापुरूषों के मुख कही हुवी व लिखे हुवे प्रवचनों की कुछ झलकियां आपके सामने रखेंगे । आप इसे ग्रहण कर आगे भी शेयर करें जिससे आप भी पुण्य के भागीदार बने ।
आहार (भोजन)
प्रथम पुष्टिकर उत्तम भोजन से शरीर को बलिष्ठ करना होगा, तभी तो मन का बल बढे़गा। मन तो शरीर का ही सूक्ष्म अंश है। vivekananda-vachan-3
हम जिन दुःखों को भोग रहे हैं, उनका अधिकांश हमारे खाये हुए आहार से ही प्रसूत होता हैं। अधिक मात्रा में तथा दुष्पाच्य भोजन के उपरान्त हम देखते कि मन को वश में रखना कितना कठिन हो जाता है।
भोजन ऐसा रहे कि परिमाण में कम, पर पुष्टिकारक हो पेट को ढेर सारे भात से ठुँस देना ही आलस्य का मूल है।
युक्त आहार का अर्थ है सादा भोजन, जिसमें बहुत अधिक मसाले न हों।
बहुत चर्बी और तैल से पका हुआ भोजन अच्छा नहीं। पूरी से रोटी अच्छी होती है। पूरी रोगियों का खाना हैं। ताजा शाक अधिक मात्रा में खाना चाहिए और मिठाई कम।
अखाद्य वस्तुओं से पेट भरने की अपेक्षा उपवास ही अच्छा है। हलवाई की दूकान पर खाने लायक कोई चीज नहीं होती, वहाँ के सब पदार्थ एकदम विष हैं।
खुब भूखे होने पर भी कचौड़ी-जलेबी को फेंककर एक पैसे की लाई मोल लेकर खाओ। किफायत भी होगी और कुछ खाया, ऐसा भी होगा। भात, दाल, रोटी, मछली, तरकारी और दूध यथेष्ट भोजन हैं।
हमारे देश में जिनके पास दो पैसा है, वे अपने बाल-बच्चों को पूरी-मिठाई खिलायेंगे ही भात-रोटी खिलाना उनके लिए अपमान है। इससे बाल बच्चे आलसी, निर्बुद्धि हो जाते हैं तथा उनका पेट निकल आता है और शकल सचमुच जानवर जैसी हो जाती हैं।
अगर स्वाद की इन्द्रिय को ढील दी, तो सभी इन्द्रियाँ बेलगाम दौडे़गी। vivekananda-vachan-3