सन्तो की वाणी
स्वामी विवेकानन्द के विचार
swami vivekananda vichar – vivekananda quotes in hindi
सन्तो की वाणी में आपको भारत के सन्त और महापुरूषों के मुख कही हुवी व लिखे हुवे प्रवचनों की कुछ झलकियां आपके सामने रखेंगे । आप इसे ग्रहण कर आगे भी शेयर करें जिससे आप भी पुण्य के भागीदार बने ।
चरित्रगठन
इस जगत में श्रेय का मार्ग सबसे दुर्गम और पथरीला है। आश्रचर्य की बात है कि इतने लोग सफलता प्राप्त करते है, कितने लोग असफल होते हैं यह आश्रचर्य नहीं। सहस्त्रों ठोकर खाकर चरित्र का गठन होता है। vivekananda-vichar-3
केवल सत्कार्य करते रहो, सर्वदा पवित्र चिन्तन करो, असत संस्कार रोकने का बस, यही एक उपाय है। ऐसा कभी मत कहो कि अमुक के उद्धार की कोई आशा नहीं है। क्यों ? इसलिए कि वह व्यक्ति केवल एक विशिष्ट प्रकार के चरित्र का-
कुछ अभ्यासों की समष्टि का द्योतक मात्र है, और ये अभ्यास नये और सत अभ्यास से दूर किये जा सकते हैं। चरित्र बस, पुनः पुनः अभ्यास की समष्टि मात्र है और इस प्रकार का पुनः पुनः अभ्यास ही चरित्र का सुधार कर सकता है।
अपने को शुद्ध कर लों और संसार का विशुद्ध होना अवश्यम्भावी है।
चरित्रगठन में सुख और दुःख, दोनां ही समान रूप से उपादानस्वरूप हैं। चरित्र को एक विशिष्ट ढाँचे में ढालने में शुभ और अशुभ, दोनों का समान अंश रहता है, और कभी कभी तो दुःख सुख से भी बड़ा शिक्षक हो जाता है।
आकस्मिक अवसर तो छोटे से छोटे मनुष्य को भी किसी न किसी प्रकार का बड़प्पन दे देते है। परन्तु वास्तव में महान तो वही है, जिसका चरित्र सदैव और सब अवस्थाओं में महान तथा एकसम रहता है।
संसार के धर्म प्राणहीन परिहास की वस्तु हो गये हैं। जगत को जिस वस्तु की आवश्यकता है, वह है चरित्र। संसार को ऐसे लोग चाहिए, जिनका जीवन स्वार्थहीन ज्वलन्त प्रेम का उदाहरण है। वह प्रेम एक एक शब्द को वज्र के समान प्रभावशाली बना देगा।
चरित्र ही कठिनाइयों की संगीन दीवारे तोड़कर अपना रास्ता बना सकता है। vivekananda-vichar-3