सन्तो की वाणी
देवउठनी एकादशी व्रत कथा और पूजन विधि
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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देव उठनी ग्यारस कहा जाता है। भगवान विष्णु आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को चार महीने के लिए क्षीर सागर में (पाताल लोक) चले गये थे और चार महीने उपरान्त कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की इसी एकादशी को जागते हैं। भगवान के शयनकाल के इन 4 मासों में कोई भी विवाह आदि -मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। विष्णुजी के जागने के बाद ही सभी मांगलिक कार्य किये जाते हैं।
इस दिन व्रत रखने वाले सुबह स्नानादि से निवृत होकर विष्णु भगवान की पूजा करने के लिए आंगन के बीच में गेरू व धोली से देव माण्डकर उनके चरण माण्डते हैं तथा दिन में ढक देते हैं। शाम को जल, मोली, रोली, चावल, खजली-पापड़ी, मखाणे, फूलियों काचार बोर, फली, रूई तथा दक्षिणा चढ़ाकर पूजा करते हैं तथा दीपक जलाते हैं। देव उठाने के गीत गाते हैं। इस दिन फलाहार किया जाता है और व्रत करने से समस्त पापों से मुक्त होकर स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
देव उठाने का गीत
काचर बोल फली गुजरात, उठो देव पोकर जात ।
इसी तरह पांच बार बोलते हैं और लोहे की छलनी से माण्डने को ढक देते हैं।
कहानी
एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा बहुत सुख से रहती थी। उसके राज्य में एकादशी के दिन अन्न कोई भी नहीं बेचता था। राजा की आज्ञा मानकर ऐसा सभी करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान एक सुन्दरी का रूप बनाकर मार्ग के बीचोबीच बैठ गये। तभी राजा की सवारी उधर से निकली तो राजा उस सुन्दरी को देखकर आश्चर्यचकित हो गया और उससे पूछने लगा, ‘‘हे सुन्दरी! तुम कौन हो? इस मार्ग के बीच में क्यों बैठी हो?’’
सुन्दरी बोली, ‘‘इस दुनिया में मेरा सुख-दुःख बांटने वाला कोई नहीं है। राजा ने उसके रूप पर मोहित होकर उसे कहा, ‘‘तुम मेरे महल में चलो और मेरी रानी बन कर रहो।’’ सुन्दरीरूपी भगवाल बोले, ‘‘मैं आपकी बात तभी मानूंगी जब आप अपना पूरा राज्य मुझे सौंप दोगे। मैं जो भी बनाऊं वही आपको खाना पड़ेगा।’’ राजा उसके रूप पर इतना मोहित हो गये थे कि बिना सोचे समझे ही सारी शर्तें मानने के लिए हाँ भर दी। दूसरे दिन एकादशी थी। रानी के कहे अनुसार बाजारों में अन्न बेचा गया। माँस-मछली का भोजन बनवाया गया। रानी ने राजा के सामने वही भोजन खाने की जिद की। dev-uthani-gyaras-katha-in-hindi
परन्तु राजा ने कहा, ‘‘आज एकादशी है, मैं तो सिर्फ फलाहार ही खाऊंगा।’’ तब छोटी रानी ने कहा कि अगर आप यह भोजन नहीं करोगे तो राजकुमार का सिर काटा दूंगी। राजा असमंजस में पड़ गया तथा बड़ी रानी को पूरी बात बताई। बड़ी रानी समझदार थी। उसने राजा को धर्म न छोड़ने की सलाह दी और कहा कि पुत्र का सिर दे दो। परन्तु अपने धर्म को मत छोड़ो। राजकुमार भी दोनों की बातें सुनकर अपना सिर देने को सहमत हो गया।
तभी सुन्दरी के रूप वाले भगवान प्रकट हुए, और बोले, हे राजन तुम इस कठिन परीक्षा में खरे उतरे हो। आज मैं बहुत प्रसन्न हूं। तुम कोई भी वर माँग सकते हो।’’ सभी राजा बोला, ‘‘भगवन् आपका दिया सब कुछ है, आप तो हमारा उद्धार कर दीजिए। कुछ समय बाद राजा अपना राज्य पुत्र को सौंपकर विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चला गया। dev-uthani-gyaras-katha-in-hindi