Home Vrat Katha तुलसी विवाह कथा और पूजन विधि /tulsi-vivah-katha-in-hindi ebig24blog

तुलसी विवाह कथा और पूजन विधि /tulsi-vivah-katha-in-hindi ebig24blog

8 second read
0
47
14,844
tulsi-vivah-katha-in-hindi

व्रत कथा

तुलसी विवाह कथा

tulsi-vivah-katha-in-hindi कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी पूजन का विशेष महत्त्व माना गया है। भारतीय संस्कृति में तुलसी के पौधे को गंगा-यमुना के समान पवित्र माना है। तुलसी को एक विष्णुप्रिया भी कहा जाता है। किसी भी प्रकार के पूजन में तुलसी चढ़ाना आवश्यक समझा जाता है। तुलसी के पौधे को प्रातः स्नान के बाद सींचना स्वास्थ्य के लिए अति लाभदायक होता है। तुलसी के पौधे के कारण आसपास की वायु भी शुद्ध हो जाती है जो कि स्वास्थ्य के लिए अति गुणकारी होती है।

कार्तिक मास में स्नान करने वाली स्त्रियां कार्तिक की शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह रचाती है। विवाह कराने वाला व्रत भी करता हैं विवाह देव उठाने के बाद करना चाहिये। समस्त विधि विधान तथा गाजे बाजे से एक मण्डप तैयार करके विवाह का कार्य सम्पन्न किया जाता है।

तुलसी जी के गमले को धोली व गेरू से माडंकर सुन्दर बनाया जाता है। रोली, मोली, चावल, प्रसाद, नारियल, जल का कलश, दक्षिणा तथा लाल कपड़ा या साड़ी तथा अगरबती इन सब पूजन सामग्री से पूजन करना चाहिए। शालिग्राम जी के मोली लपेटकर तुलसीजी के साथ फेरे भी कराये जाते हैं। तुलसीजी के आगे सुहाग पिटारी का सामान चूड़ी मेहन्दी, बिन्दी, काजल, सिन्दूर तथा साड़ी-ब्लाऊज रखना चाहिए। अगले दिन यह सब सामान ब्राह्मण को दे देना चाहिए या मन्दिर में चढ़ा देना चाहिए।

santo ki vani
santo ki vani

कहानी –

प्राचीन काल में जालन्धर नाम का एक राक्षस था। वह बड़ा वीर तथा पराक्रमी था। उसकी पत्नि वृन्दा एक पतिव्रता नारी थी। वह अपनी पत्नि के पतिव्रता धर्म के प्रभाव के कारण सब जगह विजयी होता है। जालन्धर के उपद्रवों से डरकर देवता तथा ऋषिगण भगवान विष्णु के पास गये और प्रार्थना करने लगे कि भगवान आप ही हमारी रक्षा कर सकते हैं। उनकी बात सुनकर भगवान ने वृन्दा का पतिव्रत धर्म भंग करने का निश्चय किया। उन्होंने योग माया द्वारा वृन्दा के पति का मृत शरीर उसके आंगन में रखवा दिया। अपने पति को मृत देखकर वह बुरी तरह विलाप करने लगी।tulsi-vivah-katha-in-hindi

इतने में एक ऋषि ने वहां आकर मृत शरीर में जान डालने की बात कही तो वृन्दा ने हां भर दी। ऋषि ने मृत शरीर में जान डाल दी। उसने अपन पति को जिन्दा देखकर भावावेश में उसका आलिंगन कर लिया। जिसके कारण उसका पतिव्रत धर्म नष्ट हो गया। बाद में वृन्दा को भगवाल का छल ज्ञात हुआ तो उसने भगवान को श्राम दिया कि जिस प्रकार छल से तुमने हमारे पति का वियोग कराया है उसी प्रकार तुम भी स्त्री वियोग सहोगे।

उधर उसका पति भी अपनी पत्नि का पतिव्रत धर्म नष्ळ होने के कारण युद्ध करता-करता मारा गया। वृन्दा भी अपने पति के शव के साथ सती हो गई। भगवान विष्णु अब स्वयं के द्वारा किये गये छल पर बड़े लज्जित होने लगे। देवताओं तथा ऋषियों ने उनहें कई प्रकार से समझाया। पार्वतीजी ने वृन्दा की चिता भस्म में आंवला, मालती व तुलसी के पौधे लगा दिये।tulsi-vivah-katha-in-hindi

भगवान विष्णु ने तुलसी को ही वृन्दा माना (इसी कारण राम अवतार के समय सीता वियोग को सहना पड़ा)। भगवान विष्णु ने वृन्दा से कहा, ‘‘हे वृन्दा! तुम मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है और तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य मेरा तथा तुम्हारा विवाह करायेगा वह परम-धाम को प्राप्त करेगा।

इसी कारण कार्तिक के शुक्ल पक्ष की एकादशी को शालिग्रामजी के साथ तुलसी का विवाह सम्पन्न कराया जाता है। तुलसी का कन्या मानकर व्रत करने वाला व्यक्ति ब्राह्मणों को दान-दहेज के रूप में देता है तथा अपने संबंधियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराता है और तुलसी को कन्या समझकर विष्णु भगवान को अपनी कन्या दान देकर तुलसी विवाह पूर्ण करते हैं। अतः तुलसी विवाह tulsi-vivah-katha-in-hindi करने का बड़ा ही माहात्म माना गया है।

Load More Related Articles
Load More By ebig24blog
Load More In Vrat Katha

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

सुविचार / suvichar in hindi 162 – anmol vachan in hindi

सुविचार आज का विचार suvichar in hindi – anmol vachan in hindi आज का विचार के इस वैज्ञानिक …