भगवान बुद्ध की वाणी
buddha gautam ka sandesh – bhagwan buddha ki katha
सन्तो की वाणी में आपको भारत के सन्त और महापुरूषों के मुख कही हुवी व लिखे हुवे प्रवचनों की कुछ झलकियां आपके सामने रखेंगे । आप इसे ग्रहण कर आगे भी शेयर करें जिससे आप भी पुण्य के भागीदार बने ।
मन भाग 2
यह मन दूरगामी, अकेला विचरनेवाला, अशरीरी और गुहाशायी (चेतना का पीठ) है। जो इसका संयम करते हैं, वे ही मार (काम) के बन्धन से मुक्त हेते है। gautam-ka-sandesh
जितनी भलाई माता-पिता या दूसरे भाई बन्धु नहीं कर सकते, उससे अधिक भलाई ठीक मार्ग पर लगा हुआ चित्त करता है और व्यक्ति का उन्नयन करता है।
जितनी हानि शत्रु शत्रु की और वैरी वैरी की करता है, उससे अधिक बुराई झुठे मार्ग पर लगा हुआ चित्त करता है।
अनभ्यास ध्यान की अपवित्रता है, अस्वच्छता शरीर की अपवित्रता है, प्रमाद इन्द्रियों की अपवित्रता है और चंचलता मन की अपवित्रता है।
जो व्यक्ति जाग्रत है, जिसका मन तृष्णा से रहित है, उस व्यक्ति के लिए कोई भय नहीं।
सभी प्रकार की बुराइयों से दूर रहना, सत्कर्मों को सम्पन्न करना तथा, अपने मन को शुद्ध करना- यही बुद्धों का मत है।
मन का उन्नयन करो और द ृढ़ संकल्प के साथ निष्ठापूर्वक श्रद्धा की खोज करो, सदाचरण के नियमों का उल्लंघन मत करो, तुम्हारा आनन्द बाहरी वस्तुओं पर आधारित न होकर तुम्हारे अपने मन पर निर्भर हो। इस प्रकार तुम्हारा यश युगों तक बना रहेगा और तुम तथागत के स्नेह के पात्र होंगे। gautam-ka-sandesh