सन्तो की वाणी
भगवान बुद्ध की वाणी
buddha gautam ka sandesh – bhagwan buddha ki katha
सन्तो की वाणी में आपको भारत के सन्त और महापुरूषों के मुख कही हुवी व लिखे हुवे प्रवचनों की कुछ झलकियां आपके सामने रखेंगे । आप इसे ग्रहण कर आगे भी शेयर करें जिससे आप भी पुण्य के भागीदार बने ।
एक बार जैतवन के सभी ग्रामवासी भगवान बुद्ध के दर्शन करने और उपदेश सुनने के लिए एकत्रित हुए। उस समय महाकश्यप, मौदगल्यायन, सारिपूत्र, चंद्र और देवदत्त जैसे प्रबुद्धजन बुद्ध के साथ धर्मविषयक गंभीर चर्चा में तन्मय थे। ग्रामवासी थोड़ा ठिठककर खड़े हो गए, क्योंकि इतने ज्ञानीजनों के बीच उन सभी को असहज-सा महसूस हो रहा था। buddha-ki-katha
कुछ देर बाद बुद्ध की दृष्टि इन ग्रामवासियों पर पड़ी। उन्होने तुरंत धर्म-चर्चा रोक दी। प्रबुद्धजन बुद्ध के इस व्यवहार पर चकित हो उठे और प्रश्नात्मक दृष्टि से उनकी और देखा। बुद्ध अनादिपिण्डक नामक जिज्ञासु से बोले- भद्र! उठो! सामने ब्राहमण- मंडली खड़ी है, उन्हें आसन दो और आतिथ्य की सामग्री ले आओ।
अनाथपिण्डत ने पीछे मुड़कर देखा, तो उसे ब्राहामण – मंडली तो कहीं नहीं दिखी, मैले-कुचले या फटे वस्त्रों में खड़े ग्रामवासियों का झुण्ड दिखाई दिया। पिण्डक ने शंकित स्वर में कहा- देव! इन लोगों में एक भी ब्राहमण नहीं हैं। ये सभी तो निम्न जाति के हैं। कई तो इनमें शूद्र हैं।
यह सुनकर बूद्ध गंभीर होकर बोले – पिण्डक! जो व्यक्ति सदायशता के प्रति श्रद्धावान है, वह ब्राहमण ही है। ये लोग श्रेष्ठ प्रयोजन के लिए भावयुक्त होकर आए हैं। इसलिए इस समय तो ये ब्राहमण ही हैं। अतः तुम इनका समुचित सत्कार करो।
शिक्षा :- व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से ब्राहमण होता है। जो सदगुणी हो और सत्यकर्मी हों, वह शूद्रजाति में जन्मने के बावजूद ब्राहमण हैं और उसी रूप में उनका आदर किया जाना चाहिए। buddha-ki-katha