स्वर्ग और नरक का द्वार
एक लघु कहानी
आज जिस प्रेरक प्रसंग प्रेरक प्रसंग prerak-prasang-aaj-ka-vichar-4 की बात कर रहें । वह है स्वर्ग और नरक का द्वार ।
एक बार जापान के सन्त हाकुइन के पास एक सैनिक आया और उसने प्रश्न किया, महाराज ! स्वर्ग और नरक अस्तित्व में है या केवल उनका हौवा बना दिया गया है ?
हाकुइन न उसकी और एकटक देखकर पुछा, तुम्हारा पेशा क्या है ? जी, मै सिपाही हूँ, उसने उत्तर दिया ।
सन्त ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, क्या कहा, तुम सिपाही हो ! मगर चेहरे से तो तुम कोई भिखारी मालूम होते हो ! तुम्हें जिसने भर्ती किया है, वह निश्चय ही कोई मूर्ख होगा ।
यह सुनते ही वह सैनिक आगबबुला हो गया और उसका हाथ तलवार की और गया । यह देख हाकुइन बोले, अच्छा ! तुम साथ में तलवार भी रखते हो ! मगर इसकी धार पैनी नहीं मालूम पड़ती, फिर इससे मेरा सिर कैसे उड़ा पाओगे ?prerak-prasang-aaj-ka-vichar-4
इन शब्दो ने उसको क्रोधग्नि में घी का काम किया । उसने झट से म्यान से तलवार खींच ली । तब सन्त बोले, लो, नरक के द्वार खुल गये ।
सन्त के ये शब्द उसके कानों तक पहुंच भी न पाये थे कि उसने महसूस किया कि सामने तलवार देखकर भी यह साधु शान्त बैठा हुआ है । उसकी क्रोधाग्नि एकदम शान्त हो गयी । उनका आत्मसंयम देख उसने तलवार म्यान में रख दी । तब सन्त बोले, लो, अब स्वर्ग के द्वार खुल गये ।
इसलिए साधु-सन्त आदि कहते है की स्वर्ग व नरक इसी पृथ्वीलोक पर ही है । जैसा हमारा कर्म वैसा स्वर्ग व नरक का द्वार । अच्छे कर्म, सेवा, साधना व सत्संग आदि में लीन रहते हुवे अपना जीवन व्यतित करें ।
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