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व्रत कथा
गोपाष्टमी की कथा
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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्ठमी को गोपाष्टमी कहा गया है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को गायों को चराने वन भेजा गया था। इस दिन प्रातःकाल गायों को स्नान कराकर बछड़े सहित उनकी जल, रोली, अक्षत, मोती, गुड़, धूप-दीप से पूजा करके आरती उतारनी चाहिए। इस दिन गायों के साथ-साथ बछड़े की पूजा का भी बहुत महत्त्व माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन गायों को गुड़ खिलाकर उनकी परिक्रमा करने से समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। गायों के सायंकाल जंगल से वापस लौटने पर उनको प्रणाम करके उनकी चरणरज को मस्तक पर लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है।
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कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत धारण किया था। आठवें दिन इंद्र अहंकार रहित श्रीकृष्ण की शरण में आए तथा क्षमायाचना की। सके बाद कामधेनु ने भगवान कृष्ण का अभिषेक किया। इसी दिन से भगवान कृष्ण गायों की रक्षा करने के कारण गोविन्द नाम से पुकारे जाने लगे। और इसी दिन से यह पर्व गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा। gopashtami-vrat-katha